बालासोर/भुवनेश्वर – ओडिशा के बालासोर ज़िले स्थित फकीर मोहन कॉलेज की बी.एड. द्वितीय वर्ष की छात्रा द्वारा आत्मदाह की घटना ने पूरे प्रदेश और देश को झकझोर कर रख दिया है। छात्रा द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत के बाद कार्रवाई न होने से आहत होकर आत्मदाह जैसा कठोर कदम उठाना प्रशासनिक असंवेदनशीलता और सामाजिक विफलता का प्रतीक बन गया है।
पीड़िता ने 1 जुलाई को कॉलेज के एक शिक्षक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। शिकायत के बावजूद आरोपी शिक्षक के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कॉलेज प्रशासन ने मामला टालने की नीति अपनाई और जांच समिति केवल औपचारिक बनकर रह गई। पीड़िता ने सांसद प्रतापचंद सारंगी को भी मामले की जानकारी दी, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी न्याय नहीं मिला।
आख़िरकार, छात्रा ने कॉलेज परिसर में आत्मदाह कर लिया और तीन दिन तक ज़िंदगी से संघर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
राजनीतिक घमासान: सवाल को राजनीति कहना अन्याय से भागना
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस घटना को भाजपा शासित ओडिशा सरकार की असफलता बताया, वहीं केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रतिक्रिया में इसे “घटिया राजनीति” कहा। लेकिन प्रश्न यह उठता है क्या न्याय की मांग करना राजनीति है या ज़िम्मेदारी?
महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल
कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोप के अनुसार, ओडिशा में पिछले एक वर्ष में 40,000 से अधिक महिलाएं गायब हुई हैं और रोज़ औसतन 15 बलात्कार के मामले सामने आते हैं। ये आंकड़े यदि सत्य हैं, तो यह शासन और प्रशासन के लिए चेतावनी हैं।
संगठन भी रहे मौन
पीड़िता के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ाव की जानकारी सामने आई है, लेकिन न तो संगठन ने कोई स्पष्ट बयान दिया, न ही कोई गंभीर हस्तक्षेप किया। यह चुप्पी न केवल संगठन, बल्कि वैचारिक प्रतिबद्धता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
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❖ प्रशासन की विलंबित कार्रवाई
छात्रा की मृत्यु के बाद कॉलेज प्राचार्य को निलंबित कर दिया गया है और जांच समिति को पुनर्गठित किया गया है, लेकिन यह कदम अब बहुत देर से और अपर्याप्त प्रतीत हो रहा है।