
बांदा। लोकतंत्र सेनानी अखिलेश श्रीवास्तव एवं मैयादीन सोनी ने संयुक्त रूप से अपनी आपातकाल के दौरान संघर्ष को बताते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि आज का दिन हमें याद दिलाता है उस काले अध्याय की जब भारत के लोकतंत्र को एक तानाशाह सोच ने कुचलने की कोशिश की थी। 25 जून 1975 को देश में आपातकाल थोप दिया गया।संविधान को ताक पर रखकर,न्यायपालिका को दबाकर और जनता की आवाज़ को कुचलने का घिनौना प्रयास हुआ।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इसका डटकर विरोध करती है,करती रही है और करती रहेगी।मुख्य वक्ता डा. दीपाली गुप्ता ने कहा कि हम नहीं भूल सकते कि किस तरह से गरीबों को ज़बरन नसबंदी का शिकार बनाया गया।युवाओं की आवाज़ को लाठियों से दबाया गया।पत्रकारों की कलम को कैद में डाल दिया गया।संविधान की आत्मा को जंजीरों में जकड़ा गया।वो दौर था जब ‘सरकार’ ने खुद को ‘देश’ समझ लिया और सत्ता की रक्षा के नाम पर हर आवाज़ को कुचलने की कोशिश की।डा. अशोक परिहार ने बताया कि यह भारत की भूमि है।यहां न झुकने वाले पैदा होते हैं,न डरने वाले,विद्यार्थी परिषद का हर कार्यकर्ता आज संगोष्ठी के माध्यम से ये संकल्प लेता है कि जब जब कोई तानाशाही सोच हमारे लोकतंत्र को चुनौती देगी,तब तब हम सड़कों पर उतरेंगे।जिला प्रमुख डा. शैलेश सिंह ने बताया कि हम इस संगोष्ठी को सिर्फ विरोध की नहीं,चेतना की संगोष्ठी मानते हैं।ये संगोष्ठी है याद की,न्याय की और आने वाली पीढ़ियों को यह बताने की कि भारत की जनता चुप नहीं बैठती, इतिहास गवाह है कि हमने हर तानाशाह सोच को नकारा है।अंत में,हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कृ लोकतंत्र को कुचलने की सोच कभी सफल नहीं हो सकती और आज का युवा,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता कि संकल्पबद्ध है,जागरूक है और तैयार है।कार्यक्रम के दौरान लोकतंत्र सेनानीयों का सम्मान किया गया।इस दौरान डा.जितेन्द्र बाजपेई, डा.विक्रम बाला जी,विभाग संगठन मंत्री शिवम पाण्डेय,दिव्यांशु,गोविंद,कार्तिकेय,नीतीश, आशीष,राज,अभय,श्लोक,स्वतंत्र साहू,रामेंद्र, वंश,अनामिका,मानसी आदि मौजूद रहे।
रिपोर्ट
शिवम सिंह ब्यूरो चीफ बांदा