बलरामपुर:- भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के खूबसूरत जंगलों में बेशकीमती पेड़ो पर वनमाफियाओ का आतंक, बनकटवा रेंज अन्तर्गत पिपरा चौकी एवं गेस्ट हाउस के पीछे करीब 100मीटर उत्तर पश्चिम घाट के ऊपर सागौन टांगिया में वनमाफियाओ द्वारा बेशकीमती जंगली शीशम सागौन के पेड़ो का अंधाधुंध कटान स्थानीय अधिकारी अनजान दो दर्जन से अधिक पेड़ो का हुआ कटान।
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के खूबसूरत जंगलों में एक है।
यह जंगल रायल बंगाल टाइगर का प्राकृतवास माना जाता है। विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों वाला यह जंगल अकूत प्राकृतिक सम्पदा को अपने आगोश में समेटे हुये है लेकिन पिछले तीन दशकों से लगातार इस जंगल का दोहन किया जा रहा है जिसका परिणाम यह हुआ है कि न सिर्फ वन बल्कि वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है *एक खास रिपोर्ट*
यह जंगल रायल बंगाल टाइगर का प्राकृतवास माना जाता है। विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों वाला यह जंगल अकूत प्राकृतिक सम्पदा को अपने आगोश में समेटे हुये है लेकिन पिछले तीन दशकों से लगातार इस जंगल का दोहन किया जा रहा है जिसका परिणाम यह हुआ है कि न सिर्फ वन बल्कि वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है *एक खास रिपोर्ट*
नेपाल से सटी 125 किलोमीटर की सीमा पर स्थित सोहेलवा जंगल 452 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। तराई और भांभर जैव विविधिता को प्रदर्शित करने वाला यह उत्तर प्रदेश का एक मात्र जंगल है। यह जंगल जैव विविधिता के मामले में विश्व विख्यात है।
रायल बंगाल टाइगर का प्राकृतवास माना जाने वाला यह जंगल कभी शिकारियों का सबसे पसंदीदा स्थल माना जाता था। आजादी के पहले अंग्रेज यहां वन्यजीवों का शिकार करने आते थे। 1991 में इसे रिजर्व फारेस्ट घोषित कर दिया गया। लेकिन उसी के साथ जंगल का दोहन भी शुरु हो गया जो आज तक जारी है। संगठित वनमाफिया न सिर्फ वन्यजीवों का शिकार करते हैं बल्कि बेशकीमती लकड़ियों का अवैध कटान भी करते है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि यह जंगल सिकुड़ता चला जा रहा है।आज इस जंगल का अस्तित्व बचाना भी मुश्किल होता जा रहा है। इस घने जंगलों में बेशकीमती साल, शीशम और सागौन के पेड़ इस जंगल की शोभा बढ़ाते है।
सोहेलवा जंगल नेपाल की खुली सीमा पर स्थित होने के कारण नेपाल की ओर से भी इस जंगल में लगातार दोहन किया जाता है। इस जंगल की सुरक्षा को लेकर दोनो देशो के प्रतिनिधियों की मीटिंग भी लगातार होती रहती है लेकिन कोई प्रभावी अंकुश अभी तक नही लग पाया है जिसका दुष्परिणाम इस खूबसूरत जंगल पर साफ दिखाई देता है।
रायल बंगाल टाइगर का प्राकृतवास माना जाने वाला यह जंगल कभी शिकारियों का सबसे पसंदीदा स्थल माना जाता था। आजादी के पहले अंग्रेज यहां वन्यजीवों का शिकार करने आते थे। 1991 में इसे रिजर्व फारेस्ट घोषित कर दिया गया। लेकिन उसी के साथ जंगल का दोहन भी शुरु हो गया जो आज तक जारी है। संगठित वनमाफिया न सिर्फ वन्यजीवों का शिकार करते हैं बल्कि बेशकीमती लकड़ियों का अवैध कटान भी करते है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि यह जंगल सिकुड़ता चला जा रहा है।आज इस जंगल का अस्तित्व बचाना भी मुश्किल होता जा रहा है। इस घने जंगलों में बेशकीमती साल, शीशम और सागौन के पेड़ इस जंगल की शोभा बढ़ाते है।
सोहेलवा जंगल नेपाल की खुली सीमा पर स्थित होने के कारण नेपाल की ओर से भी इस जंगल में लगातार दोहन किया जाता है। इस जंगल की सुरक्षा को लेकर दोनो देशो के प्रतिनिधियों की मीटिंग भी लगातार होती रहती है लेकिन कोई प्रभावी अंकुश अभी तक नही लग पाया है जिसका दुष्परिणाम इस खूबसूरत जंगल पर साफ दिखाई देता है।
भारत-नेपाल सीमा पर एसएसबी की तैनाती के बाद से जंगल में होने वाले अवैध कटान और अवैध शिकार पर कुछ हद तक अंकुश जरुर लगा है लेकिन शासन की उपेक्षा इस जंगल के अस्तित्व पर भारी पड़ती जा रही है।
समय रहते यदि इसके संरक्षण की दिशा में कठोर कदम नही उठाये गये तो यह जंगल का अस्तित्व वनमाफिया मिटा देंगे। इस बावत डीएफओ प्रखर गुप्ता से बात करने के लिए कोशिश किया गया फोन पर आवाज सुनाई नहीं दिया। रेंजर आर के सिंह ने बताया कि जानकारी मिली है जांच कराई जाएगी।
समय रहते यदि इसके संरक्षण की दिशा में कठोर कदम नही उठाये गये तो यह जंगल का अस्तित्व वनमाफिया मिटा देंगे। इस बावत डीएफओ प्रखर गुप्ता से बात करने के लिए कोशिश किया गया फोन पर आवाज सुनाई नहीं दिया। रेंजर आर के सिंह ने बताया कि जानकारी मिली है जांच कराई जाएगी।
रिपोर्ट अंकुर मिश्रा, मंडल हेड