एक बेटी के दर्द भरे जीवन की छोटी सी दास्ताँ
जब दर्द हद से गुजरता है, तो दर्द दिल की आह बनकर निकलता है।
एक बेटी अपने दर्द को अपने माता – पिता और परिवारजनों से बयां करती है तो रूह काँप जाती है l
एक बेटी अपनी माँ से कहती है कि बहुत दर्द सहकर ,दर्द की कराह के बीच आँखों मे आसूं लिए , तुझसे कुछ कहकर जा रही हूँ l आज मेरी विदाई मे जब सहेलियाँ आयेगी, तब मुझे सफेद जोड़े मे देखकर सिसक- सिसक कर रोयेगी l तब वह एक लड़की होने के दर्द के बीच अफसोस जतायेगी l माँ उनसे कह देना मेरा संदेश – “इन दरिन्दों की दुनिया मे संभलकर रहना क्योंकि यह संसार लडकियों को जीना नही सिखाता है l” सुन माँ – जब भैया की कलाई सूनी रह जायेगी , तब- तब भैया की आखों में आसूं भर आयेगे। लेकिन माँ उस समय भैया के तिलक करने को रूह मेरी मचलेगी। लेकिन माँ और पापा भी बेटी के दर्द के बीच छुप छुप कर बहुत रोयेगे, वह अपने आप को कोसेगे की बेटी के लिए कुछ कर ना पाए।परन्तु दर्द का अहसास उन्हें होने ना देना माँ।पापा से बोल देना वह अभिमान , सम्मान और स्वाभिमान है बेटी का l ऐ माँ अब तुझसे क्या बोलू इस कठिन समय इस दर्द की दास्ताँ को कैसे बताऊँ?
यह दुनिया तुझे सतायेगी, ताने मारेगी और मुझे आजादी देने का इल्जाम भी लगायेगी l
अन्त में एक बात बोलतीं हूँ l
माँ सब जुल्म सह लेना बस यह ना कहना कि “अगले जनम मोहे बिटिया ना देना”