जिले के युवक ने बनाया उत्तर प्रदेश दर्पण, चारों तरफ हो रही सराहना।
▪️2017 में 2 कुंटल 11 किलो गेहूं के दानों से बनाया था ₹1 का सिक्का।
▪️ 2017 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था नाम।
▪️ लगभग 10000 की लागत से बनाया उत्तर प्रदेश दर्पण।
ब्यूरो रिपोर्ट- अमौली/फतेहपुर
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के एक युवक ने उत्तर प्रदेश दर्पण नाम का एक कलाकृति तैयार किया है। उत्तर प्रदेश में जितने गांव, शहर हैं सबको जोड़ा गया है। उत्तर प्रदेश दर्पण में बने नक्शे में इन सभी गांवों की गिनती करके उसी अनुसार पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एकत्रित करके उत्तर प्रदेश दर्पण में सम्मिलित किया गया है।
जनपद के अमौली क्षेत्र के सराय धर्मपुर गांव निवासी शैलेंद्र उत्तम ने अद्भुत काम किया है। शैलेंद्र ने अपनी खुद की मेहनत और लगन से उत्तर प्रदेश दर्पण के नाम से एक मानचित्र रूपी कलाकृति तैयार किया है जिसमें उन्होंने कई महापुरुषों और बड़े मंदिरों को अपनी कलाकृति के माध्यम से बताने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश दर्पण में काशी विश्वनाथ मंदिर, ताजमहल, युद्ध करती झांसी की रानी,राममंदिर, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, भगवान बुद्ध, श्री राम, विष्णु,हनुमान,तुलसीदास के चित्रों के साथ साथ शैलेंद्र ने उत्तर प्रदेश दर्पण के माध्यम से यह भी दर्शाया है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। उत्तर प्रदेश दर्पण में किसानों को खेतों में काम करते हुए दर्शाया गया है जिसमें कहीं किसान बैल ले जा रहे हैं तो कहीं फूलों में पानी डाल रहे हैं। एक तरफ जंगल में हिरण बैठा दिख रहा है तो दूसरी तरफ धान के खेतों में सारस नजरें गड़ाए बैठे हैं।
जनपद के धर्मपुर सराय गांव निवासी शैलेंद्र उत्तम (35) पुत्र स्वO रामसजीवन एक किसान परिवार से आते हैं। किसान परिवार में पले बढ़े शैलेंद्र उत्तम बचपन से ही कला में रुचि रखते थे। स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने बांबे आर्ट लखनऊ की एक संस्थान से कला सीखी। शैलेंद्र ने बताया कि बचपन से वह देखते आ रहे हैं की ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को देश के मुख्य और चर्चित स्थानों के बारे में पता नहीं चल पाता। जिसको देखकर उनके मन में यह विचार आया कि क्यों ना ऐसा मानचित्र बनाया जाए जिससे लोगों को जानने में आसानी हो। शैलेंद्र ने 10000 की लागत से उत्तर प्रदेश दर्पण को लगभग 2 महीने में तैयार किया। दर्पण में दर्शाए गए नक्शे में शैलेंद्र ने उत्तर प्रदेश के गांवों को दर्शाने के लिए 1 किलो 322 ग्राम पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को दर्पण में बने नक्शे में लगाया है। शैलेंद्र ने बताया कि इस दर्पण को बनाने मे प्ले बोर्ड, जाली, सीमेंट, बालू आदि सामग्रियों का प्रयोग किया है।
शैलेंद्र ने 2017 में 2 कुंटल 11 किलोग्राम गेहूं के दानों से ₹1 का सिक्का बनाया था। जिसकी लंबाई और चौड़ाई 5 फुट थी। देखने के लिए आसपास गांव के अलावा पड़ोसी जिले के लोग भी देखने के लिए इकट्ठा हो रहे थे। 2017 में बने सिक्के को लेकर शैलेंद्र का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है। धर्मपुर सराय गांव के रहने वाले शैलेंद्र कुमार उत्तम ने 45 दिन के अंदर गेहूं का सिक्का बना दिया था। जिस पर बहुत ही बारीकी से काम किया गया था। सिक्का 1976 का दिखाया गया था जिस पर गेहूं की दो बालियों के साथ अशोक चिन्ह को भी बनाया गया था। 2019 में शैलेंद्र ने स्वामी ब्रह्मानंद जी की 11 फुट ऊंची एक मूर्ति तैयार की थी जिसे अलसी के दानों से बनाया गया था। स्वामी ब्रह्मानंद की मूर्ति अब हमीरपुर जिले के राठ में एक फार्म हाउस में स्थापित है। शैलेंद्र ने बताया कि स्वामी ब्रह्मानंद की मूर्ति बनाने में लगभग ₹150000 की लागत लगी थी। जिसका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है। शैलेंद्र ने बताया कि इनके अलावा उन्होंने कई मूर्तियों को बनाया है जो प्रदेश के कई स्थानों पर स्थापित है। जिनमें शंकर व पार्वती की मूर्ति उनके गांव सराय बुजुर्ग के एक मंदिर में स्थापित हैं जिसे शैलेंद्र ने 2004 में बनाया था। शैलेंद्र ने बताया कि ग्रेजुएशन करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली। उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लखनऊ स्थित बांबे आर्ट संस्थान से उन्होंने कला का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के पश्चात शैलेंद्र कला में परिपूर्ण प्रशिक्षित हो गए। शैलेंद्र ने बताया कि उनकी स्नातक तक की शिक्षा कानपुर से पूरी हुई है। हाईस्कूल और इंटर की पढ़ाई विज्ञान वर्ग से की थी। काफी तैयारी करने के बाद भी जब सरकारी नौकरी नहीं मिली तो घर वापस आकर किसानी का काम करने लगे और मंदिरों में स्थापित होने वाली देवी देवताओं की मूर्ति में रंग भरने का काम भी करते थे। कला के प्रति बचपन से रुझान रखने वाले शैलेंद्र उत्तम बताते हैं कि वह जब कक्षा 5 के छात्र थे तब भाषा भास्कर नाम की एक पुस्तक पढ़ाई जाती थी जिस के मुख्य पृष्ठ पर मां सरस्वती का चित्र बना था उस चित्र को देखकर सादे कागज में चित्र बनाया तो कक्षा में उपस्थित अध्यापक देखकर बहुत खुश हुए। अध्यापक ने दुकान से दो टॉफी मंगाई और उन्हें दिया। शैलेंद्र ने कहा कि कक्षा में मुझे दो टॉफी क्या मिली मानो अरमानों को पंख लग गए। शैलेंद्र की पढ़ाई में कला विषय नहीं रहा फिर भी मूर्तियों या कलाकृतियों को देखकर उस में खो जाता था। शैलेंद्र ने कहा कि इसी लगाओ ने मुझे मूर्तियों में रंग भरने और विभिन्न प्रकार के प्रयोग करने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा अगर उत्तर प्रदेश दर्पण को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान मिलता है तो भविष्य में और कई प्रकार के अनूठे प्रयोग करता रहूंगा।
कलाकार के हुनर की जितनी तारीफ की जाए, वह कम है।
क्योकि कलाकार ने अपनी उत्कृष्ट कला का भाव दर्ज किया है।
लेकिन
इस कलाकार ने अपनी कला के माध्यम से काल्पनिक संस्कृति की पहचान को बढ़ाने का काम किया है
और
वास्तविक विश्व विरासत की पहचान (पुरातात्विक उत्खनन) को नही दर्शाया है।
कलाकार के हुनर की जितनी तारीफ की जाए, वह कम है।
क्योकि कलाकार ने अपनी उत्कृष्ट कला का भाव दर्ज किया है।
लेकिन
इस कलाकार ने अपनी कला के माध्यम से काल्पनिक संस्कृति की पहचान को बढ़ाने का काम किया है
और
वास्तविक विश्व विरासत की पहचान (पुरातात्विक उत्खनन) को नही दर्शाया है।