

पपरेंदा बांदा।उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की चर्चित अमलोर खदान एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह कोई विकास कार्य नहीं, बल्कि जमकर हो रहा अवैध खनन है। क्षेत्रीय सूत्रों की मानें तो इस खनन में राजनीतिक, प्रशासनिक और माफिया गठजोड़ का पूरा नेटवर्क सक्रिय है, जो एनजीटी के कड़े नियमों, एमएमडीआर एक्ट 1957 की धारा 21 समेत तमाम कानूनी व्यवस्थाओं की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहा है।
विशेष धर्म के माफिया सपा नेता और भाजपा नेता दोनों हैं हिस्सेदार ?
स्थानीय जानकारी के मुताबिक इस अवैध खनन में एक विशेष धर्म के समाजवादी पार्टी से जुड़े प्रभावशाली व्यक्ति का बड़ा निवेश है। साथ ही एक बड़े भाजपा नेता को भी इस खनन माफिया से अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचने की बात कही जा रही है। सूत्र बताते हैं कि इस पूरे नेटवर्क को प्रदेश सरकार के कुछ बड़े अधिकारियों का भी संरक्षण प्राप्त है, जो इस अवैध कारोबार को आंख मूंदकर नजरअंदाज कर रहे हैं।
दिन-रात चल रहा अवैध खनन, प्रतिबंधित पोकलैंड मशीनें तैनात
एनजीटी के दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर भारी और प्रतिबंधित पोकलैंड मशीनों से खनन कराया जा रहा है। दिन-रात बिना किसी रोक-टोक के यह गतिविधियां जारी हैं, जिससे क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र, जल स्रोत और ग्रामीण जीवन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
स्वास्थ्य माफिया का भी निवेश, लेकिन प्रशासन मौन
सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि जिले के एक चर्चित स्वास्थ्य माफिया ने भी इस अवैध खनन में मोटी पूंजी लगाई है। यह वही माफिया है जिस पर पहले भी जांचों और सरकारी योजनाओं में गड़बड़ियों के आरोप लग चुके हैं व कार्यवाही भी हो चुकी हैं । बावजूद इसके, उसके खिलाफ न कोई जांच हो रही है और न ही कोई कार्रवाई।
MMDR एक्ट का उल्लंघन, फिर भी कोई गिरफ्तारी नहीं
MMDR Act 1957 की धारा 21 के अनुसार अवैध खनन दंडनीय अपराध है, जिसमें मशीनों की जब्ती और दोषियों की गिरफ्तारी का प्रावधान है। लेकिन अमलोर में इसका खुलेआम उल्लंघन हो रहा है और अब तक किसी की गिरफ्तारी तक नहीं हुई है। प्रशासनिक तंत्र की यह निष्क्रियता कई सवाल खड़े करती है।
मीडिया को साधने के लिए दलाल सक्रिय
खबरों के मुताबिक इस पूरे मामले को दबाने के लिए कुछ स्थानीय संगठन के दलालनुमा तथाकथित पत्रकारों को सक्रिय कर दिया गया है, जो असली पत्रकारिता करने वालों को गुमराह करने और खबरों को दबाने का काम कर रहे हैं। जो कल तक दूसरों को दलाल कहते थे सिक्कों की खनक में उनके उपदेश खुद दलाली और नाच करने का था। अपने आप को वरिष्ठ और वास्तविक पत्रकार लिखने वाले दलाल भाजपा और सत्ता के संगठन को बदनाम कर रहे हैं टोपी और डन्डे की फोटो डालकर कभी अपनी राइफल को लहराते हुए फोटो डालकर यह खतरनाक प्रवृत्ति न केवल लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर कर रही है, बल्कि जनहित की आवाज को भी कुचल रही है।
जनता का सवाल:
क्या खनन माफियाओं पर कभी कार्रवाई होगी?
क्या एनजीटी और अदालतें इस खुले उल्लंघन पर स्वतः संज्ञान लेंगी?
क्या सरकार और प्रशासन इस मामले में पारदर्शिता दिखाएंगे?
मीडिया को दबाने वालों पर कार्रवाई कब होगी?
जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, तब तक यह मानना गलत नहीं होगा कि अमलोर खदान अब सिर्फ खनिज नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, राजनीतिक गठजोड़ और प्रशासनिक चुप्पी की खदान बन चुकी है।
रिपोर्ट
अनुपम गुप्ता संवाददाता