
बांदा।दुनिया के सबसे बडे़ लोकतांत्रिक देश भारत का लोकतंत्र आज़ से ठीक 50 वर्ष पूर्व यानि 25 जून 1975 को उस समय खतरे में पड़ गया था,जब तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने “मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट”अर्थात मीसा कानून के तहत सम्पूर्ण देश में आपातकाल लगा दिया और लोकतंत्र का खात्मा करने की सोची समझी साज़िश की। इसीलिए यह दिन लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय कहा जाएगा।वरिष्ठ समाजसेवी नौशाद भारतीय ने बताया कि द्वितीय आज़ादी का आंदोलन कहे जाने वाले आपातकाल लगने के पीछे दो मुख्य कारण थे।पहला कारण था आज़ादी के आंदोलन के योद्धा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की रहनुमाई में 7 मार्च 1975 को दिल्ली में कांग्रेसी हुकूमत के विरोध में छात्रों, नौजवानों,किसानों,मजदूरों के साथ ही साथ समस्त विपक्षी दलों का एक विशाल प्रदर्शन। बेरोजगारी,महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के साथ सम्पूर्ण सामाजिक परिवर्तन हेतु आहुत इस आंदोलन में तक़रीबन 10 लाख लोगों ने भाग लिया।यह प्रदर्शन इतना जबरजस्त था कि इंदिरा गांधी और उनकी पूरी सरकार हिल गयी,घबरा गयी। इसके पूर्व दिल्ली में इस तरह का जन प्रदर्शन कभी नही हुआ।इस सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन का प्रमुख नारा था राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”।इसीलिए आपातकाल लगने का पहला कारण बना देश की जनता का तात्कालीन सरकार के प्रति आक्रोश।नौशाद भारतीय ने आगे कहा कि आपातकाल लगने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण रहा 1971 में उत्तर प्रदेश की रायबरेली संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव,जिसमें प्रत्यक्ष रूप में देश के प्रख्यात समाजवादी नेता राजनारायण को कांग्रेस की उम्मीदवार इंदिरा गांधी ने चुनाव हरा दिया। राजनारायण ये चुनाव तो हार गए लेकिन उन्होनें इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ वो सारे सबूत इकट्ठे कर लिए जो इंदिरा गांधी के चुनाव को गलत या अवैध साबित कर सकते थे इन्ही सबूतों के आधार पर नेता राजनारायण ने इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनाव को अवैध घोषित करने के लिए रिट पिटीशन दायर की।ठोस सबूतों के आधार पर इलाहबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने कई वर्षो तक चले इस मुकदमें के बाद 12 जून 1975 को दुनिया को चौंका देने वाला ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया, जिसमें उन्होनें माना कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया है, इसलिए इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित किया जाता है और 6 साल तक उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित किया जाता है।इस निर्णय से बौखलाई इंदिरा गांधी द्वारा फ़ैसला आने के ठीक 13 दिन बाद यानि आज ही के दिन 25 जून 1975 को लोकतंत्र का गला घोंट कर सम्पूर्ण देश में आपातकाल लगा दिया गया जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी समाप्त कर दी गयी। इस तानाशाही का विरोध करने वाले लोगों के लिखने और बोलने पर पाबंदी लगा दी गयी।परिवार नियोजन के नाम पर 17 साल के नौजवान से लेकर 75 साल के बुजुर्ग तक का ऑपरेशन कर दिया गया।प्रेस में सेंसरशिप लगा दी गयी और पूरे देश में सत्ता के विरोधियों को मीसा कानून के तहत चुन चुन कर जेल की सीकचों में ठूंस दिया गया। नौशाद भारतीय ने आगे बताया कि आपातकाल की ज्यादती का एक बड़ा नमूना ये भी था कि लोग मीसा में गिरफ़्तार होने के बाद अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए किसी भी अदालत में अपील नहीं कर सकते थे इसलिए उस समय कहा जाता था “नो अपील,नो वकील,नो दलील”।महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन जिन मूल्यों के लिए चलाया था वो मूल्य आपातकाल में खतरे में पड़ने लग गए थे। लोकतंत्र खतरे में पड़ने लग गया था।आलम ये था कि चहुँ ओर हो रही मनमानी से आम जनमानस में व्यापक भय व्याप्त हो गया। किंतु जब इंदिरा गांधी पर अंतराष्ट्रीय राजनैतिक दबाव पड़ा तो उसके चलते उन्हें 21 मार्च 1977 को इस देश से आपातकाल हटाना पड़ा और लोकसभा का चुनाव कराना पड़ा और इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी नेता राजनारायण ने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली लोकसभा से करारी मात दी।नौशाद भारतीय के अनुसार आपातकाल में समूचे देश में विपक्षी राजनैतिक दलों के समस्त बडे़ नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था,जिनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण,मोरारजी देसाई,राजनारायण,अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर,चौधरी चरण सिंह,जार्ज फर्नांडिस,मधु लिमये,मधु दंडवते,लालकृष्ण आडवाणी, जनेश्वर मिश्रा,कर्पूरी ठाकुर एवं सुषमा स्वराज जैसे प्रख्यात राष्ट्रीय राजनेता शामिल थे।
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इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया का नारा
इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होने के बाद कांग्रेसियों ने कहा कि हम कोर्ट के आदेश को नहीं मानते।दिल्ली में जगह-जगह कांग्रेस के नेताओं ने टेंट लगा कर इंदिरा गांधी के समर्थन में कार्यक्रम किए और नारा दिया इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया।इस तरह से कांग्रेसियों ने इंदिरा गांधी के हौंसले को बढ़ाया।उस समय के बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने दिल्ली आकर इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि आप आपातकाल लगा दो।इंदिरा गांधी ने होम सेक्रेटरी से आपातकाल फाइल पर साइन करने के लिए कहा,लेकिन उसने साइन करने से मना कर दिया तो राजस्थान के मुख्य सचिव को बुलाकर गृह सचिव बनाया गया और उनसे इमरजेंसी के आदेश पर साइन कराए गए और 25 जून को रात 12 बजे से पहले सभी अधिकारियों से साइन कराके इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी।
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प्रशासन के पास 101 सेनानियों को रिकार्ड
आपात काल के दौरान जनपद से तीन सैकड़ा से अधिक लोग गिरफ्तार कर जेल भेजे गए थे,लेकिन उनमे से महज अभी तक प्रशासन के पास 101 लोकतंत्र सेनानियों को रिकार्ड उपलब्ध हैं। जिन्हें प्रदेश सरकार द्वारा लोकतंत्र सेनानी पेंशन भी दी जा रही हैं। शेष लोकतंत्र सेनानियों को न ही जेल मे कोई रिकार्ड उपलब्ध है और न ही पुलिस के पास हैं।
रिपोर्ट
शिवम सिंह ब्यूरो चीफ बांदा