
🖋 ओम वीर सिंह, संवाददाता – बरेली
📍 बरेली, उत्तर प्रदेश।
प्रदेश में शिक्षा को लेकर भारतीय जनता पार्टी की नीतियों पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। शिक्षकों, छात्रों और शिक्षा प्रेमियों का आरोप है कि भाजपा सरकार एक ओर तो शिक्षकों की भर्ती नहीं कर रही, और दूसरी ओर कम छात्रों के नाम पर सरकारी स्कूलों का मर्जर करके पहले से कार्यरत शिक्षकों की नौकरी पर भी संकट खड़ा कर रही है।
प्रमुख बिंदु जो उठाए जा रहे हैं:
🔹 कम बच्चों के नाम पर स्कूलों का मर्जर न किया जाए, बल्कि स्कूलों की संख्या को बनाए रखते हुए विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाए।
🔹 स्कूल परिसरों का प्रौढ़ शिक्षा के लिए उपयोग किया जाए, जिससे गांव-देहात में भी लोगों को साक्षरता की दिशा में बढ़ाया जा सके।
🔹 खाली समय और जगह का उपयोग महिलाओं के शिक्षण-प्रशिक्षण और स्किल डेवलपमेंट के लिए किया जाए।
🔹 शिक्षा केंद्रों का सकारात्मक सामुदायिक उपयोग करके उन्हें गांव और समाज के विकास का केंद्र बनाया जा सकता है।
📢 विरोधियों का आरोप है कि भाजपा शिक्षा से डरती है, क्योंकि पढ़ा-लिखा समाज सवाल करता है, और सत्ता से जवाब मांगता है।
“जब भाजपा अपने आलीशान दफ्तर देशभर में खोल सकती है, तो गांव के स्कूलों को क्यों बंद किया जा रहा है?”
— यह सवाल अब आम लोगों की जुबान पर भी आ चुका है।
📣 पढ़ाई, रोज़गार और हक़ की लड़ाई अब तेज़ होती दिख रही है, और जनता चाहती है कि शिक्षा के नाम पर राजनीति नहीं, नीति बने।