
बांदा।25 जून की तपती दोपहर,जब शहर अपने रोज़मर्रा के शोर में डूबा था,उसी वक्त बांदा के हृदयस्थल अशोक लाट के नीचे दो बुज़ुर्ग भाई गिरजा शरण और राम सनेही न्याय की आस में भूखे-प्यासे अनशन पर बैठे थे।न तंबू,न चटाई,बस खुला आसमान और साथ में एक चुप्पी,जो इस शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता की सबसे सटीक तस्वीर पेश करती है।गिरजा शरण ग्राम पंचायत घोषण थाना कमासिन के निवासी हैं।वह अपने पैतृक भूखंड पर वर्षों बाद घर बनवाने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन गांव के ही कुछ दबंगों सदाशिव यादव और उनका पूरा परिवार द्वारा लगातार उनके निर्माण कार्य में अवैध रूप से बाधा डाली जा रही है।5 जून को स्थिति इतनी बिगड़ गई कि निर्माण सामग्री से भरे ट्रैक्टर को रोक दिया गया। मजदूरों को डराया गया,गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी दी गई,यहां तक कि फावड़े-सब्बल लेकर हमला करने की कोशिश हुई।उनकी सामग्री (एंगल,बाल्टी,तसला आदि) भी जबरन छीन ली गई।उन्होंने 7 जून को थाने से लेकर अपर पुलिस अधीक्षक तक को शिकायती पत्र सौंपा,मगर अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई।जब कोई रास्ता नहीं बचा, तो गिरजा शरण और उनके भाई राम सनेही ने 25 जून से बांदा के अशोक लाट पर आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।
“हम तो बस न्याय चाहते हैं… खुशी से अनशन पर नहीं बैठे।गांव जाऊंगा तो मार दिए जाऊंगा।इसलिए अपनी जान बचाने और इज्जत की लड़ाई के लिए यहां बैठा हूं,”गिरजा शरण की डबडबाई आंखों में भय, थकान और उम्मीद एक साथ दिखाई देती है।उनके पास 2011 में तत्कालीन ग्राम प्रधान और ग्रामीणों द्वारा किया गया पंचनामा है,जिसमें उनकी भूमि के स्वामित्व की पुष्टि की गई थी।बावजूद इसके न तो शासन सुन रहा है, न प्रशासन।
कहां हैं अधिकारी? क्या बुज़ुर्गों की सुनवाई अब केवल मृत्यु के बाद होती है?
दो बुज़ुर्ग भाई गिरजा शरण और राम सनेही शांति से अनशन पर बैठे हैं।उन्हें न तो कोई जिला प्रशासन का प्रतिनिधि मिलने आया,न कोई थाना प्रभारी। कोई पूछने तक नहीं आया कि क्यों भूखे बैठे हैं।
क्या यह लोकतंत्र में नागरिक के अधिकारों की मौत नहीं है?
क्या एक किसान की ज़मीन, उसकी सुरक्षा और उसकी पुकार अब ताकतवरों की मर्ज़ी पर निर्भर हो गई है?
क्या प्रशासन तब ही जागेगा जब यह अनशन किसी अनहोनी में बदल जाएगा?
यह सिर्फ एक परिवार की नहीं, पूरे तंत्र की परीक्षा है
यह मामला गिरजा शरण और राम सनेही का नहीं, बल्कि उस पूरी ग्रामीण जनता का है जो अपनी ज़मीन,अधिकार और सम्मान को लेकर दर-दर ठोकरें खा रही है।
सरकार भले ‘न्याय सबके लिए’ की बात करे, लेकिन अशोक लाट पर बैठा यह मौन सत्याग्रह एक कठोर सवाल बनकर खड़ा है
क्या बुज़ुर्गों को न्याय मांगने के लिए मरना पड़ेगा?
एक सप्ताह पूर्व हुई चोरी का मामला दर्ज
रिपोर्ट
शिवम सिंह ब्यूरो चीफ बांदा