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*अंबेडकर जयंती पर सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और समानता के सपनों की पुनः पड़ताल*
जब हम भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाते हैं — जो हमारे संविधान के निर्माता, अद्वितीय दूरदृष्टा और सामाजिक न्याय के महान योद्धा थे — तो यह केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं होना चाहिए। यह आत्म-मंथन का अवसर होना चाहिए।
डॉ. अंबेडकर ने हमें चेताया था:
“*संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, वह बुरा साबित हो सकता है अगर उसे लागू करने वाले लोग बुरे निकलें।”*
आज के भारत में यह चेतावनी बेहद प्रासंगिक हो चुकी है।
*संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना*
अंबेडकर ने एक ऐसा गणराज्य कल्पित किया था जो चार स्तंभों पर टिका हो: *न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता।*
परंतु आज, आज़ादी के 75 साल बाद, ये मूल्य लगातार कमजोर हो रहे हैं:
• स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है – बोलने की आज़ादी पर पहरे हैं, मीडिया पर दबाव है, और असहमति को अपराध बना दिया गया है।
• समानता की भावना को अमीर-गरीब, जाति और धर्म के अंतर ने खोखला कर दिया है।
• बंधुता अब केवल संविधान की किताबों में बची है — जबकि समाज में नफ़रत, हिंसा और विभाजन पनप रहे हैं।
*जाति, पूंजी और सांप्रदायिकता: तीहरी चुनौती*
अंबेडकर का सबसे बड़ा संघर्ष जाति व्यवस्था के खिलाफ था। उन्होंने कहा था:
“*जाति केवल श्रम का विभाजन नहीं है, यह श्रमिकों का विभाजन है।”*
फिर भी, आज जातिगत भेदभाव हर जगह मौजूद है — गाँवों में, शहरों में, स्कूलों में और अदालतों तक में। दलितों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। मनुवादी मानसिकता ने डिजिटल युग में भी जगह बना ली है।
इसी के साथ, *पूंजीवादी लूट और कारपोरेट एकाधिकार* देश की आर्थिक आत्मा को निगल रहे हैं। अंबेडकर ने सार्वजनिक क्षेत्र को आर्थिक लोकतंत्र का आधार माना था, परंतु आज उसे बेचने की होड़ मची है।
और शायद सबसे बड़ा खतरा — *सांप्रदायिक ध्रुवीकरण*!जब धर्म नफ़रत का हथियार बन जाए, जब अल्पसंख्यकों को देशद्रोही कह कर अलग किया जाए, तब अंबेडकर की कल्पना का भारत दम तोड़ता है।
*सामाजिक न्याय पर हमला*
अंबेडकर ने बार-बार कहा था:
“*राजनीतिक लोकतंत्र तब तक अधूरा है जब तक सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना न हो।”*
पर आज:
• *दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएं और ट्रांस समुदाय अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।*
• *आरक्षण को “merit” के नाम पर कमजोर किया जा रहा है।*
• *सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है।*
• *लाखों स्कीम वर्कर्स (ASHA, आंगनवाड़ी, मिड-डे मील) आज भी मान्यता, वेतन और अधिकारों से वंचित हैं।*
• *गिग वर्कर्स (जैसे डिलीवरी बॉय, कैब ड्राइवर) आधुनिक दासता के शिकार हैं — बिना किसी सुरक्षा या गारंटी के*
*अंधभक्ति और लोकतंत्र का क्षरण*
डॉ. अंबेडकर ने कहा था:
“*धार्मिक क्षेत्र में भक्ति मोक्ष का मार्ग हो सकती है, परंतु राजनीति में भक्ति निश्चित रूप से पतन का मार्ग है।”*
आज सत्ता की चाटुकारिता, नेता-पूजन और संस्थाओं का अवमूल्यन हमारे लोकतंत्र को खोखला बना रहा है। संसद की गरिमा गिरी है, न्यायपालिका पर सवाल हैं, और विरोध को देशद्रोह घोषित कर दिया गया है।
अब ज़रूरत है – *अंबेडकर के गणराज्य को पुनः जीवित करने की*
अंबेडकर को याद करना सिर्फ उनकी मूर्तियों पर माला चढ़ाना नहीं है।
उन्हें याद करने का मतलब है – *अन्याय से लड़ना, आंदोलन खड़ा करना, जनता को जगाना।*
सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम:
• *संविधान की आत्मा को बचाएं और उसे लागू करें*
• *जाति उन्मूलन की दिशा में ठोस कदम उठाएं।*
• *सांप्रदायिक राजनीति का मुकाबला करें और भाईचारे को पुनर्स्थापित करें।*
• *श्रमिकों, गरीबों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करें।*
• *वैज्ञानिक सोच, शिक्षा और सार्वजनिक संसाधनों को मजबूत करें।*
*अंबेडकर का सपना अभी ज़िंदा है — पर उसे रक्षक चाहिए*
डॉ. अंबेडकर ने हमें सिर्फ संविधान नहीं दिया — उन्होंने हमें मुक्ति का एक सपना दिया।
*आज, जब उनके नाम पर समारोह हो रहे हैं, तब हमें खुद से यह पूछना होगा*:
*क्या हम उनके सपनों का भारत बना पाए?*
*या सिर्फ उनके नाम का उपयोग करके उनके विचारों को दफ़ना रहे हैं?*
अंबेडकर ने कहा था:
“*हम एक ऐसे जीवन में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ राजनीति में हम बराबरी की बात करेंगे, परंतु सामाजिक और आर्थिक जीवन में घोर असमानता बनी रहेगी* क्या हम इस विरोधाभास के साथ जीते रहेंगे?”
*आइए, इस अंबेडकर जयंती को केवल एक रस्म न बनने दें —*
*इसे एक संकल्प बनाएं।*
*न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता के लिए संघर्ष का संकल्प*
रिपोर्ट
हरीश कुमार जिला ब्यूरो चीफ बरेली