बांदा:- आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से, हमें मिली आजादी वीर शहीदों के बलिदान से। देशभक्ति की यह कविता बुंदेलखंड के सूरमाओं की भी याद दिलाता है, जिन्होंने जंग-ए-आजादी में वतन के खातिर अपनी जान कुर्बान कर दी थी।
बांदा के 27 क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने भूरागढ़ दुर्ग में फांसी पर चढ़ा दिया था। आजादी के इन दीवानों में धर्म-मजहब नहीं,
बल्कि सिर्फ हिंदुस्तानी थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच घमासान में बुंदेलखंड भी पीछे नहीं रहा।
बल्कि सिर्फ हिंदुस्तानी थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच घमासान में बुंदेलखंड भी पीछे नहीं रहा।
इतिहास की मानें तो क्रांति की शुरुआत के दो साल बाद सन 1859 में बांदा शहर की सरहद पर स्थित केन नदी किनारे भूरागढ़ दुर्ग में अंग्रेजों ने 27 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें फांसी पर लटका दिया था। 8 जून 1858 को अदालत ने बांदा के इन 27 क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई थी।
इनमें ज्यादातर क्रांतिकारी मुस्लिम वर्ग के थे। दुर्ग में फांसी वाले स्थान पर स्थित शहीद स्मारक क्रांतिकारियों की शहादत की याद दिला रहा है। स्मारक पर शहीदों के नाम भी दर्ज हैं।
ये क्रांतिकारी लटकाए गए फांसी पर
विलायत हुसैन, सरदार मोहम्मद, हिकमत उल्ला खां, मीर फरहत अली, उस्मान खां, मिर्जा इमदाद बेग, हैदर खां, गुलाम हैदर खां, इमदाद अली, हनुमंत राव, बाबूराव गोरे, नवाब अली, अकबर बेग, फैय्याज मोहम्मद, छत्ता खां, मुख्तार मोहम्मद, देवीदीन, कादिर बेग, इदरीस मोहम्मद, बेग अली, मोहम्मद अली बेग, पैगाम अली, काले खां, इस्माइल खां, कुतुब अली खां, अय्याम व शेख जुम्मन।