गीत
प्रेम सरोवर
“प्रेम भरा मन मंदिर जिसका सुंदर सा स्थान वही है।।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
अपने छंद में शब्द पिरोकर मन की कुछ मैं बात करूँ।
बसी हो यदि दुर्भावना मन में प्रेम की बरसात करूँ।।
हृदय जिसका प्रेम भरा हो ईश्वर का अवतार वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है
प्रेम भरा मन मंदिर जिसका सुंदर सा स्थान वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
मन के दूषित जल को अपने गंगाजल सा पावन कर लो
छल व द्वेष मिटाकर अपने अंतर का आह्वाहन कर लो।
जगजीवन में प्रेम भरें जो मानवता विस्तार वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
प्रेम भरा मन मंदिर जिसका सुंदर सा स्थान वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
प्रेम ही गाता प्रेम सुनाता वो इस जग से न्यारा है।
सबको खुशियाँ हर पल दे जो सबका वो प्यारा है।
जिसके मन में प्रेम बहें ईश्वर का उपहार वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
प्रेम भरा मन मंदिर जिसका सुंदर सा स्थान वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
मधुर मधुर जब शब्द मिलेंगे, सुंदर सा संगीत बनेगा।
आज प्रेम की नवधारा से अद्भुत सा इक गीत बनेगा।।
मीरा के भजनों में गुंजित होती जो सुर ताल यही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
प्रेम भरा मन मंदिर जिसका सुंदर सा स्थान वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
हिमगिरि के पावन आँचल में सुंदर सुंदर पुष्प खिलेगा।
मरुथल में यदि प्रेम है बरसा उपवन सा जीवन महकेगा।
हमारे मन मिलाने वाला केवल एक आधार यही है।।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।
प्रेम भरा मन मंदिर जिसका सुंदर सा स्थान वही है।
रसमय जिसका तन मन होता पावन सा एक धाम वही है।”
रचनाकार
प्रियांशी बरनवाल
उत्तर प्रदेश