मोदी सरकार में ओबीसी एवं अन्य मूलनिवासियों के 331सांसद संसद में रहते हुए अधिकारों का हनन
मोदी सरकार – 01 में ओबीसी एवं अन्य मूलनिवासियों के 331सांसद संसद में रहते हुए अधिकारों का हनन
मैं अपने गुलाम कौम की आजादी की बात करता हूं जो अभी आपको समझ में नही आती है। हम गुलाम कैसे हैं, बताते हैं -गत संसद के लिए 2014 के चुनाव में 200 ओबीसी सांसद एवं 131एस. सी. एवं एस. टी. के सांसद कुल 331 सांसद मूलनिवासी बहुजन समाज के थे लेकिन पूरे पांच साल में 85%के खिलाफ ही निम्न काम होता रहा और वे मूकदर्शक बने रहे:-
1.2015 में DOPT प्रधान मंत्री के विभाग ने ओबीसी प्रधान मंत्री के निर्देश पर IAS के लिए चयनित 314 उम्मीदवारों को क्रीमीलेयर के आधार पर छांटकर बाहर कर दिया गया ।
2 . 6 जून 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक न्यायादेश में ये व्यवस्था दिया कि आरक्षित कोटी के उम्मीदवार जिस कोटी से अपनी उम्मीदवारी का फार्म भरा है उसे उसी कोटी में चयनित किया जाएगा चाहे वह प्रतियोगिता का टॉपर ही क्यों न हो । इसके पूर्व ये व्यवस्था थी कि सामान्य कोटी के लिए अंक प्राप्त उम्मीदवार सामान्य कोटी में प्रोन्नत हो जाते थे और शेष को कोटीवार प्राप्त आरक्षण का लाभ मिल जाता था । इस व्यवस्था के लागू हो जाने से 15% सामान्य वर्ग के लोगों को 50.5% सीधा आरक्षण का लाभ मिल गया है। आदेश का 8 जून 2017 के नीट के परीक्षाफल पर सीधा प्रभाव पड़ा और 2017 में ओबीसी के 9000 छात्र डॉक्टर बनने से वंचित हो गए थे। ये व्यवस्था भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के सभी सेवाओं में तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया था।
3.ओबीसी की जातीय आधारित जनगणना जिसके होने पर ओबीसी के लिए विकास की योजनाएं निर्मित की जा सकती है और उसके विकास के लिए बजटीय प्रावधान किया जा सकता है जैसे एस. सी एवं एस. टी के लिए किया जाता है लेकिन सरकार आंकड़ों के अभाव का रोना रो कर ओबीसी के विकास के लिए एक पैसे का भी बजटीय प्रावधान नहीं करती है जिसके कारण ओबीसी का सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है।
4. ओबीसी को 27% आरक्षण 16/11/1992 से प्राप्त होने के बावजूद भी अभी तक सरकार में भागीदारी मात्र 4.79%(भारत सरकार कार्मिक से प्राप्त आंकड़ा) ही प्राप्त हो पाया है । इसको बैकलॉग से भरा जा सकता था।
5.प्रमोशन में आरक्षण का लाभ देकर नीति निर्माताओं में बहुजन समाज के पदाधिकारियों को सामिल किया जा सकता था। केंद्रीय संयुक्त सचिव के स्तर एवं ऊपर के पदाधिकारी ही केंद्र एवं राज्य सरकार के नीति निर्माण में भाग ले सकते हैं। वहां मूलनिवासी बहुजन समाज के पदाधिकारी पहुंच नहीं पाते पहले ही सेवानिवृत हो जाते हैं।
331 मूल निवासी बहुजन समाज सांसद संसद में बैठकर धृतराष्ट्र जैसा अपने समाज का चीर हरण होता देखते रहे। सरकार बनाने के लिए 272 सांसदों की जरूरत पड़ती है 331 सांसद कौम की दुर्दशा करवाते रहे । इनको आप गुलाम नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे। यदि हमारे सांसद और विधायक ही गुलाम हैं तो हम कैसे स्वतंत्र हो सकते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यदि उक्त अन्याय होता रहा तो संसद को सुप्रीम कोर्ट के आदेश को जनहित में बदलने का अधिकार है जिसका उपयोग मूलनिवासी बहुजन सांसद कर सकते थे। लेकिन नहीं किया ।
मोदी सरकार -02 में तो उससे भी भयंकर काम मूलनिवासी बहुजनों के साथ किया जा रहा है- उन्हें प्राप्त संवैधानिक अधिकारों को छीन कर स्थायी रूप से पुन:गुलाम बना लेने की। CAA, NPR & NCR के द्वारा इनके मौलिक अधिकारों को छीनकर, वोटिंग अधिकार छीन लेने का षड्यंत्र है NCR जैसे असम में 14.5 लाख मूलनिवासी बहुजनों को detention center में डाल कर उनके सारे नागरिक अधिकार छीन लिये गये हैं।
मूलनिवासी बहुजनों अपने अधिकारों के लिए लड़ो अन्यथा आपके आनेवाली पीढ़ियों को आपसे भी बदतर ज़िंदगी जीनी पड़ेगी । सब कुछ छीन जाने की संभावना है।