

नई दिल्ली: फाल्गुन मास की मस्ती और रंगों से सराबोर करने वाला त्योहार होली इस साल 14 मार्च 2025 को धूमधाम से मनाया जाएगा। रंगों की इस बयार से पहले 13 मार्च को होलिका दहन की परंपरा निभाई जाएगी। वहीं, 7 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत हो चुकी है, जिसका विशेष धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है।
होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और उल्लास का प्रतीक है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है और सभी मतभेदों को भूलकर प्रेम और भाईचारे की भावना को मजबूत करता है।
होलाष्टक: शुभ कार्यों पर रोक, भक्ति और साधना का समय
होलाष्टक वह समय होता है जब ज्योतिषीय दृष्टि से 8 दिनों तक सभी शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नया व्यापार, नामकरण आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते। यह काल मुख्य रूप से भक्ति, ध्यान और साधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक का समय होलाष्टक कहलाता है। इसका सबसे अधिक प्रभाव उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में देखने को मिलता है।
होलिका दहन 2025: शुभ मुहूर्त और महत्व
होलिका दहन का पर्व 13 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। यह त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि अहंकार, अन्याय और अधर्म का अंत निश्चित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन प्रह्लाद की भक्ति और होलिका के अहंकार के बीच संग्राम हुआ, जिसमें होलिका का अंत हुआ और भक्ति की विजय हुई।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त:
🔹 होलिका दहन तिथि: 13 मार्च 2025
🔹 शुभ समय: शाम 11:26 बजे से रात 12:29 बजे तक
इस दिन लोग लकड़ी और उपलों से होलिका की अग्नि जलाते हैं और उसमें नई फसल, नारियल, गेहूं और चना डालते हैं। ऐसा करने से परिवार में सुख-समृद्धि और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
होली 2025: रंगों की बहार, उमंग और उत्साह का दिन
14 मार्च 2025 को धुलंडी या रंगों की होली खेली जाएगी। इस दिन लोग गुलाल, अबीर और प्राकृतिक रंगों से एक-दूसरे को रंगते हैं और बधाई देते हैं।
होली के दिन लोग गुझिया, मालपुआ, ठंडाई, पापड़ और अन्य पारंपरिक पकवानों का आनंद लेते हैं। कई जगहों पर फाग उत्सव और होली के गीतों की धूम रहती है।
होली के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व
होली का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक भी है। इस पर्व का उल्लेख पुराणों, महाकाव्यों और ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है।
ब्रज की होली: मथुरा और वृंदावन में यह त्योहार राधा-कृष्ण की प्रेमलीलाओं से जुड़ा हुआ है। यहां लट्ठमार होली, फूलों की होली और रंग पंचमी का विशेष आयोजन होता है।
शांतिनिकेतन की होली: पश्चिम बंगाल में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शुरू की गई बसंत उत्सव शैली में होली मनाई जाती है।
पंजाब की होली: यहां इसे होला मोहल्ला के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सिख समुदाय विशेष जश्न मनाता है।
राजस्थान की होली: यहां मेवाड़ और शाही परिवारों की होली प्रसिद्ध है।
होली खेलने से पहले रखें ये सावधानियां
होली खेलने के दौरान कुछ सावधानियों का ध्यान रखना ज़रूरी है:
✔ केमिकल वाले रंगों से बचें और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें।
✔ आंखों, कान और नाक में रंग न जाने दें।
✔ बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें।
✔ होली के दौरान अत्यधिक नशा और हुड़दंग से बचें।
✔ पानी की बर्बादी न करें और संवेदनशील लोगों को जबरदस्ती रंग न लगाएं।
निष्कर्ष: होली 2025 का पर्व मनाएं प्रेम, उमंग और भाईचारे के साथ!
होली का पर्व सद्भावना, उल्लास और नई ऊर्जा का संचार करता है। इस साल 14 मार्च को रंगों की होली और 13 मार्च को होलिका दहन के साथ इस पावन पर्व को पूरे हर्षोल्लास से मनाएं।
“बुरा न मानो होली है!” इस मंत्र के साथ रंगों की इस बौछार में शामिल हों और खुशियों को गले लगाएं।